04 फ़रवरी, 2022

रैना बैरन हुई

 



रैना बैरन हुई उसकी 
पलकें न झपकीं एक पल भी
इन्तजार किसी का करते  
रात्रि कब बीती मालूम नहीं  |
भोर हुआ जब मुर्गा बोला
पक्षियों ने बसेरा छोड़ा
चल दिए भोजन की तलाश में
सर पर खुले आसमान में |  
धूप खिलते ही तंद्रा टूटी उसकी  
जल्दी किया प्रातःवंदन
फिर कियी जलपान तैयार हुई
  चल दी अपने कार्य स्थल की ओर|

किसी कारण जब मन होता विचलित  

उसका असामान्य  व्यवहार देख
 सब उत्सुक रहते कारण जानने  को 
किसे बताती क्यों निदिया बैरन हुई |
उसे समझने में देर न लगती
क्या कारण रहता रात्रि जागरण का  
तुम्हारी राह देखना मंहगा पड़ता 
बहुत लज्जा आती पर क्या करती |
बहाने भी कितने बनाती
भारी पलकें सब बतातीं   
घुमा फिरा जब बातें होतीं
सच्चाई सामने आ ही जाती |
फिर भी पूरी बात बता ना पाती
वह कहाँ उलझी रही किन बातों में
मन कैसे उलझा उन सब में
हुई बैरन रात यह कैसे बताती |

आशा 

2 टिप्‍पणियां:

  1. ख़त का मजमून भाँप लेते हैं लिफाफा देख के ! चेहरा आइना होता है दिल का ! सारी कैफ़ियत दे देता है ! सुंदर रचना !

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  2. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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