फूल और कांटे एक साथ रहते
कभी साथ न छोड़ते
भ्रमर तितलियाँ गातीं गुनगुनातीं
पास आ मौसम का आनंद उठातीं |
जब भी पुष्पों पर आता संकट
कंटक उनकी करते रक्षा
खरोंच तक न आने देते
सदा साथ बने रहते |
होते इतने होशियार कंटक
अपना कर्तव्य निभाने में
कोई फूल तक न पहुँच पाता
उनसे बच कर जा न पाता |
जो प्यार पुष्पों से करता
कैसे भूलता संरक्षक काँटों को
कितना बचता कैसे बचता
उनसे दूर न रह पाता |
स्नेह तनिक भी कम न होता
वह धन्यवाद देना न भूलता
कंटकों को पूरी क्षमता से
अपना कर्तव्य निभाने के लिए |
आशा
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6-2-22) को "शारदे के द्वार से ज्ञान का प्रसाद लो"(चर्चा अंक 4333)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
Thanks for the information of my post
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंआदरणीया आशा जी, आपने सही लिखा है, कंटक है, तभी फूलों का सौंदर्य सुरक्षित है। हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए मर्मग्य जी |
कोमल वस्तु की रक्षा कठोर बन कर ही की जा सकती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
समय साक्षी रहना तुम by रेणु बाला
कोमल और कठोर के सह अस्तित्व का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं फूल और काँटे ! दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ! सुन्दर रचना !
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