मन हुआ बेकल बेचैन
कोई कार्य सम्पन्न न कर पाया
किसी कार्य से न जुड़ कर
खुद का आकलन न कर पाया |
आस्था की ओढ़ी चादर
बहने लगा भक्ति की नदिया में
मन को व्यस्त रखने को
बेचैनी से बचने को |
सरिता की गति सी बहा बहता गया
तेज बहाव की गति के तालमेल के साथ
भक्ति की नैया में हो कर सवार
किनारा कब आएगा आज तक पता नहीं |
जब उम्र का यह पड़ाव भी पार किया
मन में हुई उथलपुथल बेहद
जाने कब बुलावा आ जाए
हलचल है दिल में कुछ भी निश्चित नहीं |
अनदेखे भविष्य की चिंता में न घुल कर वर्तमान को पूरी तरह से जीना चाहिए ! जो होना है समय आने पर हो ही जाएगा ! अपना आज उसके लिए चिंता में घुल कर क्यों बर्बाद किया जाए !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधनुवाद साधना टिप्पणी के लिए |