प्रतीक्षा अब हुई समाप्त 
जब तुम यहाँ आईं
और मैं  तुमसे मिल पाई 
कुछ तो कोरोना का भय और
बंदिश 
कुछ व्यस्तता घर गृहस्थी की रही |
जब प्रतिबन्ध लगाए जाते थे 
या खुद ही लग जाते थे अकारण
पर क्या करते पालन की मजबूरी थी 
पर मिलना भी था आवश्यक  |
आज तमन्ना पूर्ण हुई अब 
जब लंबित प्रकरण पर ध्यान दिया
 
जब तक घर न पहुँँची 
 मन में दुविधा बनी रही |
देखते ही हुई प्रसन्नता
इतनी कि 
शब्द कम पड़े इसे व्यक्त करने को  
बहुत समय बाद मिले हों जैसे 
इसका आकलन न किया जा सकता हो
जैसे |
जाने कितनी बातें मन में
हैं कहने को 
पर शब्द नहीं मिलते स्पष्ट
करने को 
इतने से समय की छुट्टी मिली है 
मन को संतुष्टि कैसे मिलेगी
|
जीवन में समझौता करना पड़ता
है 
किससे उलझें क्या तर्क रखेंं
विधि का है विधान ऐसा ही  
थोड़े से संतुष्ट होना पड़ता है |
पहले बहुत व्यस्त थे हालातों से थे लाचार
समय नहीं मिल पाया उलझनों में फंसे थे
अब खुद कहीं नहीं जा आ पाते 
फिर किसी से क्या रखें अपेक्षा
 |
आशा 
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सुंदर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
प्रतीक्षा को तो समाप्त होना ही होता है । बहुत प्यारी रचना ।
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