इल्जाम मुझे न देना
खामोशी का
सहरा पहन कर |
यही खामोशी
तुम्हें महंगी पड़ेगी
जीवन के
कठिन दौर में |
दायरा ख्यालों का
इतना विस्तृत
नहीं है
जिससे हम दौनों में
दरार पड़ जाए
मुझे तुम से अलग
कर पाए |
इल्जाम लगाने
से पहले
ज़रा सोचना
क्या तुम्हें मेरी
कोई जरूरत
नहीं है
मुझे भी कोई
दरकार नहीं है |
आशा
बहुत सुंदर रचना । सार्थक सृजन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
जवाब देंहटाएंसुप्रभात आभार सहित धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
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