यह क्या किया ?
तुमने उसे  भुलाया बेखुदी में 
सोचने समझने का
अवसर तक न दिया |
तुम्हारी बेखुदी अकेले
उसे रास न आई 
अधर में लटकी रही
ना जीने दिया ना मरने दिया |
उसने अपना आपा खोया
 दुनियादारी से नाता तोड़ा 
डूबी रही बेखुदी में
अपने दिल की गहराई में |
उसने क्या गलत किया था 
जिसकी सजा दी तुमने उसे
वह खोई बढ़ती का रही
काँटों से भरी अनजानी गलियों में|
तुम बातें तक नहीं करते
सदा गुमसुम रहते 
ऎसी बेखुदी किस काम की
तुमने उसे भुलाया |
उसने अपनी उलझनों की
हवा तक न लगने दी तुम्हें
 सदा हंसती रही खिलखिलाती रही
 पर बेखुदी में तुम भूले उसे |
आशा 
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-3-22) को "घर में फूल की क्यारी रखना.."(चर्चा-अंक 4382)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
आभार कामिनी जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए | \
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