17 अप्रैल, 2022

आज का हवाला


 

कुछ तुमने कहा

कुछ देखा सुना मैंने 

तीसरे ने सुना अनसुना किया

चौथे ने कुछ और ही अर्थ लगाया |

अर्थ का अनर्थ हो गया

कारण कोई और नहीं था

  केवल लापरवाही थी 

मन से सुनना न चाहा  |

यही बात मुझे सालती है

बहुत व्यथित हो जाती हूँ

मेरा तुम्हारा क्या कोई महत्व नहीं

इस तरह नकार दिया जाता है हमें

मानो हम कुछ जानते न हों |

आज का हवाला बारबार दिया जाता है

इसको आदर्श मान अकारण बहस की जाती है

जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता

सिवाय समय की बर्बादी के |

यदि हम जो चाहते थे सुन लिया होता

तब क्या गलत होता कुछ छोटे न हो जाते

या उनकी आधुनिकता में कमी आ जाती

क्या आज के समाज में वे पिछड़ जाते |

समझ नहीं आता आज का अनुकूलन 

पहले क्या लोग जीते नहीं थे

पर पहले संस्कार अधिक थे

दिखावे को कोई स्थान नहीं था |

आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. सब समय समय का फेर है ! सार्थक अभिव्यक्ति !

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  2. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 18 अप्रैल 2022 ) को 'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक 4404) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      आभार आपका मेरी रचना की सूचना के लिए |

      हटाएं
  4. सतयुग-त्रेता-द्वापर में भी पाखण्ड का अस्तित्व था लेकिन तब उसका बोलबाला नहीं था.
    आज पाखंडी शीर्षस्थ स्थानों पर पदासीन हैं और सीधे-सच्चे इंसान कुचले जा रहे हैं.

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  5. आज सुनने का न किसी के पास समय है न इच्छा, सब अपने मन की सुनते हैं और उसी को सही मानते हैं

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