ईश्वर ने यह रूप दिया हैं
तुम्हें
तुमने कुछ चाहा नहीं
न की अपेक्षा कोई उससे
तुम सरल चित्त हो तभी |
कोमल भावों से भरा
है मन तुम्हार
जब भी की प्रार्थना ईश्वर से
यही मांगा परमात्मा से
सब मानव रहे सदा सुख से |
हो मानव जाति का
कल्याण सदा
भव सागर हो पार
सरलता से
छल छिद्र निकट ना आवें
मोह माया से रहें दूर |
सदा रहें व्यस्त सदकर्मों में
मन कर्म बचन में हो शुद्धता
सभी कार्य सदइच्छा से हों
रहें दूर बुराइयों से |
यही नियामत मिली
तुमको इस जन्म में
पूर्व जन्म में किये सदकर्मों का फल
यहीं दिखाई देता है |
जिसकी छाया इस जन्म में
दिखाई दी है|
इसी सरलता से तुमने जीता
सारी कठिनाइयों को
प्रभु के सदा करीब रहे
कभी दूर न हो पाए
उसके वरद हस्त से
उसके चरणों के स्पर्श से |
तुमने जीत लिया
दुनियादारी के प्रपंचों को |
आशा
ऐसा सौभाग्य हर इंसान का हो यही प्रार्थना है ! सुन्दर रचना सद्भावनाओं से भरी हुई ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए