अल सुबह घूमने का मन बनाया
मखमली हरी दूब पर कदम जमाया
नर्म सा एहसास हुआ
पूरी लॉन डूबी थी शबनम मैं |
पत्तियों पर नन्हीं बूंदे शबनम की
नाचती थिरकती खेलना चाहती
आपस में
धीरे धीरे नभ में सूर्योदय
की आहट से
रश्मियाँ झांकती पत्तियों
के बीच से |
शबनम उनसे भी उलाझा करती दुलार से
यह दृश्य भी मनोरम होता
निगाहें नहीं हट पातीं उस
नज़ारे से
अनुपम प्राकृतिक दृश्य समा जाते
मन के कैनवास में |
मोर का नृत्य कोयल की कुहू कुहू
चार चाँद लगाती उसमें
मोर नाचता छमाछम
नयनों से
अश्रु झरते निरंतर उसके
यही सारे नज़ारे बांधे रखते मुझे
वहां पर
घर लौटने का मन न होता
वह
कहता तनिक ठहर जाओ |
हरश्रंगार के वृक्ष के नीचे
बिछी श्वेत चादर पुष्पों की
कहती तनिक ठहरो
यहाँ की
सुगंध का भी तो आनंद लो
यह स्वर्णिम अवसर भी न छोडो
कुछ और देर ठहरो
महकती मोगरे की क्यारी भी
रुकने को कहती |
बढ़ते कदम ठहर जाते
घर पर कार्यों का अम्बार
नजर आता
मन को नियंत्रित कर
कल बापिस आने का वादा करती
जल्दी जल्दी कदम बढाती
आशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
Thanks for the comment
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक सुषमा का सुन्दर चित्रण ! बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |