23 अप्रैल, 2022

पृथ्वी


                                                                    पृथ्वी  तो पृथ्वी है 

बहुरंगी सुन्दर सी 

 यहाँ सा स्वर्ग कहीं और  

कभी देखा नहीं |

 वैज्ञानिक जीते कल्पना में 

नए प्रयोग करते 

हल्का सा परिवर्तन 

जब भी देखते अन्तरिक्ष  में 

 महिमा मंडन उसका करते |

जब तक लोहा गर्म होता 

चोट हतौड़े की सहता 

उसके  ठंडा होने पर 

उसका अस्तित्व  है कहीं भूल जाते |

आज तक इस धरती पर 

कोई नया प्राणी  

आया नहीं अजनवी सा 

फिर कैसे कल्पना हो साकार |

 किसी  अन्य गृह पर 

जीवन का  होगा या 

जीव  रहते होंगे  पृथ्वी  की तरह 

लगती है केवल कल्पना |

कल्पना की उड़ान भी 

अच्छी लगती है 

पर कुछ तो तथ्य हो 

कभी नेत्रों को 

झलक मिली हो इनकी |

पृथ्वी सा स्वर्ग 

कभी न मिला 

आज तक वहां

  सारी कल्पना रहती 

कुछ दिन चर्चा में |

फिर कोई नाम तक 

  नहीं लेता उनका 

वे विस्मृत हो जातीं 

यहीं की गलियों में |

मेरी  एक ही बात

 समझ में आई है 

धरती से रमणीय

कोई  गृह नहीं आज तक |

आशा 



6 टिप्‍पणियां:

  1. सो तो है ! इस हरी हरी वसुंधरा से सुन्दर और कुछ नहीं ! कहीं बृह्माण्ड में होगा भी तो जिसे देखा ही नहीं उसको अपनी धरती से श्रेष्ठ कैसे मानें और क्यों मानें ! सुन्दर रचना !

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  2. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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