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इजहार -
इजहारेदिल किया उसने
बिना किसी संकोच के
प्रतिउत्तर में वह हारी बेचारी
कहा गया मुह फट उसे |
मन को किसी के आगे खोलना
अपनी बात का इजहार करना
कोई गुनाह है तब हाँ उसने गुनाह किया
पहले किसी ने बरजा नहीं उसे |
तब उसे स्पष्टवक्ता कहा जाता था
मन में जो सोचती थी
वही उसके शब्दों में झलकती थी
तारीफों की कमीं न थी तब
शब्दों की कमी हो जाती थी
उसके तारीफों के कशीदे पढ़ते |
पर अब कहा जाता है
तुम बच्ची नहीं हो जब मंह खोलो
सोच समझ कर बोला करो
अपनी हद न छोड़ा करो |
आशा
आशा
कुछ तो लोग कहेंगे ! लोगों का काम है कहना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |