मैंने क्या सोचा
क्यों किसी को दिल दिया
प्यार किस चिड़िया को कहा
अब तक अर्थ न समझा |
|दूर के ढोल सुहाने होते
कहावत सही नजर आई
जब उस प्यार ने
सर पर चढ़ घंटी बजाई |
जितने भी अनुभव हुए
मन को दुखी करते गए
कोई मिठास नहीं थी
उन शब्दों की टोकरी में |
मैंने तो फूल चुने थे
सुन्दर और सुगन्धित
पुष्प गुच्छ बनाने को
कैसे बदलाव आया अनोखा |
न गंध है न सौन्दर्य
उस ढाई अक्षर में
पर फिर भी सारा जग
बहक रहा है प्यार के चक्कर
में |
जीवन में होती इसकी भी
जररूरत
भोजन व् जल के जैसी
बिन पानी भोजन के जीना
मुश्किल हुआ जाता है |
प्यार के दर्शन बिना प्राण
अधर में लटक जाता है
यही प्रश्न मन को बेचैन
किये रहते
किसे दूं प्राथमिकता |
भावनाओं को या यथार्थ को
अब तक निश्चित नहीं कर पाई
सभी के ख्याल जाने
पर फिर भी निष्कार्ष नही
निकला
आशा
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंsdsuprabhaa+++++
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
आभार सर मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |
दोनों में सन्तुलन बनाना होगा
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा है |आपकी टिप्पणी अच्छी लगी |
हटाएंकिसे दूं प्राथमिकता |
जवाब देंहटाएंभावनाओं को या यथार्थ को
बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन।
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |
प्यार के दर्शन बिना प्राण
जवाब देंहटाएंअधर में लटक जाता है
सुंदर सृजन...
Thanks for the support
जवाब देंहटाएंमन की उथल पुथल की ईमानदार अभिव्यक्ति ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |