06 अप्रैल, 2022

भरोसा

 

जब द्रढ़ता मन में न हो

खुद पर भरोसा हो केसे

 जिस पर भी भरोसा किया

वही उस योग्य न निकला |

कितनी बार धोखा खाया
मन ने भी रोकना चाहा

कौन सत्य पर चलता

किस पर झूट का साया |

यही यदि समझ लिया होता

कभी मात न खाती

 इस रंग बिरंगी दुनिया को 

सरलता से  पार कर पाती |

यही  मेरी  कमजोरी  है

अति विश्वास सब पर जल्दी से

चाहे हो अनजान और  मिठबोला 

सही गलत की पहचान न मुझको |

जितनी बार विश्वास किया

हर बार भरोसा टूट गया

अब मुझे किसी पर  विश्वास नहीं 

हरबार यही लगता है

 कहीं यहाँ भी फरेव की दुकान  न हो  |

हो जाती हूँ असहज

किसी अजनवी पर भरोसा कर

अब  जानना भी नहीं चाहती

उस अजनवी के  बारे में

 चाहे कितना भी विश्वास दिलाए |

आशा

 

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 07 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. सुप्रभात
    आभार सहित धन्यवाद मेरी रचना को आज के पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए |

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  3. हमेशा की तरह सार्थक रचना, शुभकामनाओं सह।

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  4. अपनी अंतर्वेदना को सहज-सरल शब्दों में बखूबी पिरोया आपने।
    कहा तो जाता है कि दूध का जला छाछ (भी)फूँक-फूँक कर पीता है।
    ऐसी अच्छी रचना पठन में देने के लिए बहुत धन्यवाद आपका आकांक्षा जी।

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद जी आपका टिप्पणी के लिए |इसी प्रकार ब्लॉग पर आ कर मुझे प्रोत्साहित करते रहिये |

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  5. विश्वास तो करना ही पड़ता है, व्यथित न हों बस ईश्वर का नाम लें। नमन।

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  6. धन्यवाद विमल कुमार जी टिप्पणी के लिए |

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  7. सहज ही किसीपर विश्वास करना भी नहीं चाहिए ! सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  8. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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