दिल बहती दरिया सा
धड़कता एक रफतार से
बाधा जब आती
चाल अवरुद्ध होती उसकी भी |
पर यह अवरोध
अधिक समय न ठहरता
बह जाता नदिया के जल जैसा |
अपनी आजादी की कीमत पर
कोई अवरोध स्वीकार नहीं उसे
गति भी कम हो सहन नहीं उसे
ध्वनि धीमी वह सह न पाता |
यही विशेषता रही सदा से उसकी
सब जैसा वह हो नहीं पाता
इसी लिए है सबसे भिन्न
है दिल दरिया जैसा |
आशा
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 02 मई 2022 को 'इन्हीं साँसों के बल कल जीतने की लड़ाई जारी है' (चर्चा अंक 4418) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार रविन्द्र जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए आज के अंक में |
आदरणीया आशा लता सक्सेना जी, दिल और दरिया की तुलना करते हुए बहुत अच्छी रचना लिखी है, आपने।
जवाब देंहटाएंदिल बहती दरिया सा
धड़कता एक रफतार से
--साधुवाद --ब्रजेंद्रनाथ
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मर्मग्य जी टिप्पणी के लिए |
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5-5-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4421 में दिया जाएगा | चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंThanks for the post
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