कभी भूल कर भी
न जाना उस ओर
जहां नहीं मिलता सम्मान
यह भी जान लो |
सम्मान माँगा नहीं जाता
स्वयं के गुण ही उसे पा लेते
वे जहां से गुजरते
वह बिछ बिछ जाते |
मन को अपार प्रसन्नता होती
जब बिना मांगे
चाहा गया मिल जाता
समाज में सर उन्नत होता |
यही प्रतिष्ठा की अभिलाषा रहती
आत्म सम्मान ही धरोहर होती
या यूं कहें संचित धन राशि होती
जिसके लिए रहना दूर पड़ता
गलत आचरण से |
आशा
आशा
ज्ञानवर्धक कविता
जवाब देंहटाएंThanks for your comment
हटाएंसार्थक चिंतन ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़ियां, बिल्कुल सही
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भारती जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत ही खुबसुरत
जवाब देंहटाएंThanks for comment
जवाब देंहटाएं'बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख' -सच ही कहा गया है। आत्म सम्मान के बिना सब व्यर्थ है। सुन्दर रचना
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