मंजिलें मिले न मिलें
यह अलग बात है
कोशिश में कमी हो
यह तो सही नहीं |
प्रयत्न इतने हों जब
दूरी कभी तो कम हो
है यही गंतव्य मेरा
उस तक पहुँच पाने का |
सफलता पाने के लिए
वहां तक पहुँचाने के लिए
दिन रात कम पड़ जाएं
पर हार का मोंह न देखूं |
यही है अरदास तुमसे
मेरा मनोबल न कम हो
जिससे हो लगाव गहरा
वही पास हो मेरे |
मेरी चाहत है यही
और उद्देश्य मेरा यही
बस वहां तक पहुंचूं
यह है अधिकार मेरा |
दृढ संकल्प पाने के लिए
हर कार्य में सफल रहूँ
यही आशीष देनी मुझे
मनोबल मेरा बढ़ाना
यही है आश मेरी |
वाह बहुत खूब प्रेरणादायक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा है
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.6.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4449 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
धन्यवाद मेरी रचना की सूचना के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर ! आमीन ! आपका हौसला कभी मंद न हो !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंमुश्किल गर हौसला बन जाए तो फिर तकदीर का सिकंदर बनने से हमें कौन रोक सकता है?
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
सही मार्गदर्शन करती रचना| प्रयत्नों में कमी नहीं होनी चाहिए|
जवाब देंहटाएंsuprabhaat धन्यवाद ऋता शेखर जी मधु टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंNice post thank you Fred
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