01 जून, 2022

मंजिलें मिले न मिलें


 

                मंजिलें मिले न मिलें

यह अलग बात है

कोशिश में कमी हो

यह तो सही नहीं  |

प्रयत्न इतने हों जब

दूरी कभी तो कम हो

है यही गंतव्य मेरा

उस तक पहुँच पाने का |

सफलता पाने के लिए

वहां तक पहुँचाने के लिए

दिन रात कम पड़ जाएं

पर हार का मोंह न देखूं |

यही है अरदास तुमसे

मेरा मनोबल न कम हो

जिससे हो लगाव गहरा

 वही पास हो मेरे |

मेरी चाहत है यही

और उद्देश्य मेरा यही

बस वहां तक पहुंचूं

यह है अधिकार मेरा |

दृढ संकल्प पाने के लिए

हर कार्य में सफल रहूँ

यही आशीष देनी मुझे

 मनोबल मेरा  बढ़ाना

यही है आश मेरी |

11 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत खूब प्रेरणादायक रचना

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.6.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4449 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. बहुत सुन्दर ! आमीन ! आपका हौसला कभी मंद न हो !

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  4. वाह !
    मुश्किल गर हौसला बन जाए तो फिर तकदीर का सिकंदर बनने से हमें कौन रोक सकता है?

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  5. सही मार्गदर्शन करती रचना| प्रयत्नों में कमी नहीं होनी चाहिए|

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  6. suprabhaat धन्यवाद ऋता शेखर जी मधु टिप्पणी के लिए |

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