सीखो सीखो कुछ जानों
कुछ की असलियत पहचानों
सही गलत का अंतर जानो
सभी एक जैसे नहीं होते समझो |
एक ही कला निर्णायक नहीं होती
रिश्तों की जांच परख करने की
कौन सा रिश्ता है खून का या माना हुआ
किस में है सच्चाई और गहराई अपनेपन की
वख्त आने पर जो
जान तक न्योछावर करदे
होता सही रिश्तेदार वही |
यही परख की होती कसोटी
यह भी कभी झूटी साबित होती
लोग ऊपर से दिखावा करते
अपने को सगा संबंधी बताते |
पर केवल मतलब से
जब काम निकल जाता
पहचानने तक से इनकार करते |
आज के बनाए रिश्ते भी
होते हैं ऐसे ही सतही
गरज जब तक होती
रिश्ते बड़े प्रगाढ़ दिखते |
पर समय बीतते ही कहा जाता
आप कौन मैंने तो पहचाना नहीं
मन बहुत संतप्त होता
यह सब देख सुन कर |
अपने आप को सतर्क करता
व्यवहारिकता का पाठ सिखाता
यही है रिश्तों की पहचान बताता
अपने तो अपने ही होते है जतलाता |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-07-2022) को
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच "गरमी ने भी रंग जमाया" (चर्चा अंक-4496) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार सर मेरी रचना की सूचना के लिए |
हटाएंसत्य है बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बेनामी जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंइसीका नाम दुनिया है ! सब मौकापरस्त और स्वार्थी होते हैं ! दुनिया में व्याप्त कटु सत्य को उजागर करती सुन्दर रचना !
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