ख्याल तेरा मेरे मन को छू गया
उलझा रहा मैं तुझ में ही
कितने ही जतन किये
बड़ी कठिनाई झेली |
न भूल पाया तुझको मैं
क्षण भर के लिए भी
तू मुझे विशिष्ट लगी
मन के लिए उपयुक्त लगी |
यही विशेषता तेरी मजबूरी बनी मेरी
की कोशिश भरसक पाने की तुझे
अपने दिल की रानी बनाने की ललक
फिर भी शेष रही मेरी |
तूने जो आदर सम्मान दिया मुझे
अपने मन को खोल न पाया मैं
आहिस्ता से नजरिया बदला मैंने
उसकी भनक न लगने दी किसी को |
बहुत बड़े कदाचार से बचाया मुझे
किया मैंने पश्च्याताप दिल से
अब कोई शिकायत नहीं होगी
किसी को भी मुझसे |
मैंने सत्य का मार्ग अपनाया
आत्म शोधन किया मैंने
भूले से भी उस राह पर न
पग रखने की कसम खाई मैंने |
जिसने मुझे बहकाया था
पहले अपना मनोबल भी खो दिया था
पर दृढ विश्वास पर अडिग रहा
अब पहले सी अस्थिरता नहीं मन में |
मुझे विश्वास है अपने पर
किसी सलाह की आवश्यकता नहीं
मुझे क्या करना है स्पष्ट है अपनी आँखों के समक्ष
उसी पर अडिग खड़ा हूँ |
आशा
सुंदर, वाह वाह!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया आत्मबल प्रकट करती रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.7.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4497 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
Thanks for the information of my post
हटाएंप्रणाम आदरणीया
जवाब देंहटाएंभटकाव से मन में चिंतन द्वारा
स्वतः उबर जाना
श्रेष्ठ निर्णय
सुंदर रचना
मन के भावों की सहज अभिव्यक्ति
साधुवाद
🙏🌹🙏
Thanks for the comment for my
हटाएंPost
मन की दृढ़ता के दर्शन देती सुन्दर अभिव्यक्ति ! बढ़िया रचना !
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