29 जुलाई, 2022

प्रकृति का गीत


                                                  मधुर धुन पक्षियों की

 जब भी कानों में पड़ती

मन में मिठास घुलती मधुर स्वरों की

मन नर्तन करता मयूर सा |

जैसे ही भोर होती

कलरव उनका सुनाई देता अम्बर में

आसमान में उड़ते पंख फैला   

अपनी उपस्थिति दर्ज कराते |

स्वर लहरी इतनी मधुर होती

आकर्षित करती अपनी ओर

खुशनुमा माहौल होता प्रकृति का

मन करता कुछ देर और ठहरने को |

घर जाने का मन न होता

बगिया में रुक हरियाली का मजा उठाता

 आनंद में खो जाना चाहता

भूल जाता कितने काम करने को पड़े हैं |

जब यह ख्याल आता जल्दी से कदम उठाता

अपने आशियाने की ओर चल देता

अपने से वादा लेता समय का महत्व बताता   

 कल जल्दी ही यहाँ पहुंचना है समझाता |

आशा   

 

 

 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-07-2022) को   "काव्य का आधारभूत नियम छन्द"    (चर्चा अंक--4506)  पर भी होगी।
    --
    कृपया अपनी पोस्ट का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रकृति गीत। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर रचना है. साधुवाद!
    कृपया इस लिन्क पर जाकर मेरी रचना मेरी आवाज़ में सुने और चैनल को सब्सक्राइब करें, कमेंट बॉक्स में अपने विचार भी लिखें. सादर! -- ब्रजेन्द्र नाथ
    https://youtu.be/PkgIw7YRzyw

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रकृति का पावन स्वरुप दर्शाती सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: