11 अगस्त, 2022

बरसात का आलम

उमढ घुमड़ जब बादल आए 

 वायु जब मंद मंद चले महकाए 

मेरे बदन में सिहरन  सी दौड़े 

एक अनोखा सा एहसास हो 

जो छू जाये  तन मन को  |

कभी लगाने लगता है 

आगन में दौडूँ या खेलूँ घूम मचाऊँ 

पूरी ताकत से गीत गाऊँ गुनगुनाऊँ 

बचपन के  आने का एहसास करा के 

माँ के आँचल का एहसास  कराऊँ 

मा का एहसास  करा कर  निमंत्रण दूं 

तुम्हेंअपने पास आने का 

इस माँ ने ही झूले में झुलाया था 

गोदी में प्यार से सुलाया था 

जब भी जिद्द पर आई 

बहुत धेर्य से माँ  ने समझाया था  |                     \

जब से  मैं बड़ी हो गई हूँ 

चाहे जब डाट कहानी पढती है  

फिर भी जग की रीत निभानी पड़ती है 

अब मन मानी नहीं चल पात

पर माँ की बहुत याद आती  है  |

इसबार मुझे माँ छोड़ गई है 

भाई ने भी मुख मोड़ लिया है 

है  अव घे घर खाली खाली वीरान सा 

 कान्हां के सिवाय किसे राखी बांधू |


आशा 

4 टिप्‍पणियां:

Your reply here: