उमढ घुमड़ जब बादल आए
वायु जब मंद मंद चले महकाए
मेरे बदन में सिहरन सी दौड़े
एक अनोखा सा एहसास हो
जो छू जाये तन मन को |
कभी लगाने लगता है
आगन में दौडूँ या खेलूँ घूम मचाऊँ
पूरी ताकत से गीत गाऊँ गुनगुनाऊँ
बचपन के आने का एहसास करा के
माँ के आँचल का एहसास कराऊँ
मा का एहसास करा कर निमंत्रण दूं
तुम्हेंअपने पास आने का
इस माँ ने ही झूले में झुलाया था
गोदी में प्यार से सुलाया था
जब भी जिद्द पर आई
बहुत धेर्य से माँ ने समझाया था | \
जब से मैं बड़ी हो गई हूँ
चाहे जब डाट कहानी पढती है
फिर भी जग की रीत निभानी पड़ती है
अब मन मानी नहीं चल पात
पर माँ की बहुत याद आती है |
इसबार मुझे माँ छोड़ गई है
भाई ने भी मुख मोड़ लिया है
है अव घे घर खाली खाली वीरान सा
कान्हां के सिवाय किसे राखी बांधू |
आशा
भावुक करती बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! रक्षा बंधन की अनंत शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंdhanyvaad साधना टिप्पणी के लिए
हटाएंधन्यवाद
वाह वाह!
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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