बंधन राखी का
जाने
कितने भावों को समेटा है
मैंने
अपने आगोश में
फिर
भी मन नहीं भरता किसी
तरह
बार
बार एक
ही धुन लगी
रहती है |
एक
ही रतन लगी रहती है
तुम
कब आओगे कहाँ आओगे
एक
ही चिंता रहती है
कहीं
मुझे भूल तो न जाओगे |
पर
मुझे विश्वास है तुमपर
कभी
भुला तो न पाओगे मुझको
क्यों
कि मैंने कच्चा धागा बांधा है
तुम्हारी
कलाई पर |
जिसमें
कोई आडम्बर नहीं है
दिखावा
नहीं है
बस
केवल सात्विक प्रेम है
प्यारे
भाई का स्नेह है अटूट |
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