09 अगस्त, 2022

बंधन राखी का

  

बंधन राखी का

जाने कितने भावों को समेटा है

मैंने अपने आगोश में

फिर भी मन नहीं भरता किसी तरह

बार बार एक ही धुन लगी रहती है |

एक ही रतन लगी रहती है

तुम कब आओगे कहाँ आओगे

एक ही चिंता रहती है

कहीं मुझे भूल तो न जाओगे |

पर मुझे विश्वास है तुमपर

कभी भुला तो न पाओगे मुझको

क्यों कि मैंने कच्चा धागा बांधा है

तुम्हारी कलाई पर |

जिसमें कोई आडम्बर नहीं है

दिखावा नहीं है

बस केवल सात्विक प्रेम है

प्यारे भाई का स्नेह है अटूट |

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