17 अगस्त, 2022

मन कडवाहट से भरा

 जलने लगा हर

 श्वास  का कण कण 

तब भी ज़रा भी

 स्वर नहीं हुआ मध्यम 

किसी के पास आते ही

 गात में हुआ कम्पन 

एक झुर झुरी सी आई 

मुंह का स्वाद हुआ कटूतर |

कभी सोचा न था

 यह क्या हुआ

 कब तक ठीक होगा |

दवाई ने मुंह का स्वाद 

बहुत बर्वाद किया 

कभी दया नहीं पाली 

मन  बहुत अशांत हुआ |

दिनभर ड्रिप लगी रही 

फिर भी मन स्थिर न रहा 

बहुत  बेचैनी बढ़ती गई |

बस   एक अरदास बची थी

उससे  कुछ राहत मिली थी 

पर तब भी पूरी राहत न मिली 

फिर भी जब तक ठीक न हो पाऊँ 

जिसे करने से कुछ राहत मिली

 और अधिक जब स्वस्थ हो जाऊं  

तेरे ही गुणगान करूं 

नित गुरु  ग्रन्थ साहब   का पाठ  करूं  |

आशा सक्सेना 

 


3 टिप्‍पणियां:

  1. क्या हुआ है ? अप्ने स्वास्थ्य का ध्यान रखिये और सदा सकारात्मक रहिये !

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  2. यथार्थ का चित्रण ठीक है परंतु आशा का दामन नहीं छोड़ा जाए, शुभकामनाएं 🙏🙏

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