आज के युग में
इसी दुनिया में
हमने संसार से बहुत कुछ सीखा
छल छिद् से न बच पाए
ना ही कुछ सीखा
ना ही कुछ बन पाए |
माया नगरी में ऐसे फंसे
कदम तक उखड़ गए
बहुत खोजना चाहा
राह में ऐसे भटके
सोचा क्यूँ न जल मार्ग से
मार्ग पार कर लूँगा सहज ही
पर मझधार में नैया
हिचकोले लेने लगी
हम मार्ग में भटके |
प्रभु से की प्रार्थना
हे परमात्मा हमें
सद मार्ग की शिक्षा देना
जिससे खुद सही मार्ग को चुने
ईश्वर को कभी न भूलें
यही सब को दे सलाह
सद मार्ग पर चलें |
आशा सक्सेना
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
Thanks for the comment
हटाएंसार्थक चिंतन ! सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंdhanyvaad abhilaashaa ji
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