13 अगस्त, 2022

राखी निकली गहन उदासी में



राखी निकली गहन उदासी में 

घर था खाली खाली कोई न आया 

आता भी कैसे अन्य देश का वासी हुआ 

माँ थी जब धूम धाम से बड़े उत्साह से 

सब त्यौहार मनाए जाते थे |

अब ना तो  माँ रहीं नहीं भाई बहिन

 हुए अपने अपने में व्यस्त सब 

समय का किसी को भान न हुआ  |

सारा दिन कटता उनके इन्तजार में 

फिर भी बहिन का मन नहीं मानता 

देखती रहती द्वार पर 

जब भी दरवाजे पर आहाट होती 

वह  चौक जाती शायद भाई ने दी दस्तक |

फिर भी शगुन के कच्चे धागे 

कलाई पर कैसे न बंधते 

मन को संतोष मिल जाता है 

कान्हां को राखी बांधकर ही |

आशा 






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