तेरी तस्वीर मेरा मन में
कुछ ऎसी समाई कि
उससे छुटकारा न पाने की
मैंने कसम सी खाई |
जब भी मैं कहीं जाती
तेरी यादों मैं खोई रहती
इस तरह कि मैं भूल ही जाती
क्या करने आई थी क्या कर डाला |
यही बेखुदी मुझे खुद की समस्याओं में
उलझाए रखती उबरने न देती
अपने आप में समेटे रखती
मुझे असामाजिक बनाती जाती |
मैं कहीं की न रहती
उलझनों में फंसी रहती
सब की दृष्टि में गिर जाती
किसी से नजरें न मिला पाती |
आशा
सुंदर प्रस्तुति
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जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन , मन की महिमा अपरंपार। उस पर किसी का जोर नहीं चलता
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सादर
Thanks for the comment
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंशाश्वत प्रेम की अनुपम अभिव्यक्ति !
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