06 अगस्त, 2022

संगम कविता का कविता से



कविता से कविता का संगम

जब भी होता एक अनोखा रंग

सभी के जीवन में होता

यही सोचना पड़ता

यह  कैसे हुआ कब हुआ |

जो भी हुआ जाने क्यों हुआ

पर रंग महफिल में जमा ऐसा

बेचैन मन को सुकून मिला

जिसकी तलाश थी मुझे बरसों से  |

 जब भी बेकरार होती हूँ

मेरा मन बुझा बुझा सा रहता है

नयनों का तालाब भर जाता है

छलक जाता तनिक अधिक वर्षा से |

एक यह ही समस्या है ऐसी

 जो मुझे उलझाए रहती अपने आप में

कुछ सुधार नहीं होता अधीर  मन ममें 

अच्छी बुरी  सब बातों का जमाव

 उद्वेलित करता मेरे मन को  

होती जाती दूर्  कविता के संगम से

जिसकी मुझे आवश्यकता थी |

आशा 

आशा

1 टिप्पणी:

  1. कविता से आप कभी दूर हो ही नहीं सकतीं न कविता आपसे दूर रह पायेगी कभी ! निश्चिन्त रहिये यह संगम अवश्य ही होगा होगा और होगा !

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