लिए चौमुख दियना हाथ में
दिया ढका आँचल से
बचाया उसे हलकी बयार से
चली साथ में रौशन हुआ समस्त मार्ग
आवश्यक नहीं कोई
अन्य रौशनी के स्रोत का
दिग दिगंत चमका देदीप्तिमान हुआ
आगे जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ
फिर क्यों पलट कर पीछे देखूं |
आगे बढ़ने की चाह में
कोई नहीं व्यब्धान चाहिए
कोई बाधा उत्पन्न हो यदि उसे दूर हटाना ही है ध्येय मेरे जीवन का
कभी पीछे न
हटने की कसम खाई है |
जब जीवन
के उद्देश्य में सफल रही
यही होगी
पूर्ण सफलता मेरी
मुझे हार मंजूर नहीं
दिल मेरा टूट जाएगा
फिर जीवंत न हो पाएगा |
एक यही चाह मन में रह जाएगी
कि इस छोटे से
जीवन काल में
आगे बढूँ बढ़ती चलूँ
बिना किसी बाधा के
अपने लक्ष्य तक पहुंचूं
अपना मंतव्य पूर्ण करूं |
है यही अरमान मेरा
किसी बाधा से नहीं डरूं
जो भी बीच में आए
उसे वही समाप्त करूं
मार्ग अपना प्रशस्त करूं |
कभी हार न मानूं किसी से
अपने ही मार्ग पर चलती चलूँ
ना किसी का अधिकार छीनूँ
ना उसे अपना अधिकार का
अधिग्रहण करने दूं|
बहुत ही सुन्दर रचना हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंहै यही अरमान मेरा
जवाब देंहटाएंकिसी बाधा से नहीं डरूं
जो भी बीच में आए
उसे वही समाप्त करूं
मार्ग अपना प्रशस्त करूं |
सुंदर पंक्तियाँ आदरणीय ।