है हिन्दी हमारी मातृभाषा
हमें है प्यार उससे
कारण नहीं समझ से बाहर
लिपि है बहुत सरल उसकी |
कितनी भाषाएँ मिलीं है उससे
जल में शक्कर मिली हो जैसे |
उन शब्दों को यदि खोजा जाए
वे स्पष्ट नहीं दिखते अलग से
अपना अस्तित्व ही खो देते
दूध में शक्कर जैसे |
सरल है भाषा विज्ञान और व्याकरण
भिन्न हैं विधाएं लेखन की
बहुत सम्रद्ध है साहित्य उसका
अथाह भण्डार भरा पुस्तकों से |
मन चाहे जितना अध्यन करो
मन अतृप्त ही रहता
तभी कहा जाता है
हिन्दी है माथे की बिंदिया
बढ़ता सौंदर्य साहित्य का इससे |
अन्य भाषा के शब्दों से मिलकर
एक सामान व्यबहार होता है यहाँ
सभी भाषाओं के शब्दों से
जब मिल जाते हैं आपस में
कोई भेद नहीं होता उनसे |
है यही विशेषता मेरी मातृभाषा की
तभी है प्यारी मुझे हिन्दी दिल से |
आशा सक्सेना
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-9-22} को "हिन्दी है सबसे सरल"(चर्चा अंक 4551) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
आभार कामिनी जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए |
हटाएंसुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएं