न किया किसी से बैर
ना ही प्रीत अधिक ही पाली
बस यही किया मैंने
समान व्यबहार रखा सब से |
कभी भेदभाव न रखा
ना ही अपने तुपने का
सतही सम्बन्ध रखा
सब को अपना समझा |
जिन्दगी में दोगला
कहलाने का अवसर
किसी को न दिया
सब को एक जैसा समझा |
किया व्यबहार
सब से एक सा
किसी को कभी
धोखा न दिया
है यही विशेषता
मेरे मन के
संयत व्यबहार की |
सब को अपनाता
ज़रा भी अंतर नहीं करता
बस प्यार ही प्यार
बरस रहा आसमान से |
मन को रखा है
संयत अपने
शुद्ध एक दम
नहीं प्रभावित किसी से |
आशा सक्सेना
सुन्दर भाव ! यही होना चाहिए !
जवाब देंहटाएंसाधना टिप्पणी कलिए धन्यवाद |
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