जब बांह थामीं थी मेरी
वादा किया था साथ निभाने का
जन्म जन्मान्तर तक
मध्य मार्ग में क्यूं छोड़ा |
आशा न की थी वादा
जो साथ निभाने का था
उस वादे का क्या
जो सात जन्मों तक
निभाने का था |
उसका क्या
यह तो न्याय नहीं
मझधार में मुझे छोड़ा
कैसे कच्चे धागों को
अधर में छोड़ा
यह भी न सोचा
मेरा अब क्या होगा |
जब जीवन की कठिन डगर
एक साथ पार की
जब सारी जिम्मेंदारी
एक साथ मिल कर पार की
फिर जीवन से क्यों घबराए
मुझे भी तुम्हारे संबल की तो
आवश्य्कता थी तुम्हारी
यह तुम कैसे भूले |
आशा सक्सेना
सुंदर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलरविवार (16-10-22} को "नभ है मेघाछन्न" (चर्चा अंक-4583) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना अभिव्यक्ति ने लिए |
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 16 अक्टूबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंब्रजेन्द्र नाथ जी आपको बहुत धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
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