27 अक्तूबर, 2022

वे प्यार भरी रातें


 वे प्यार भरी रातें 

मनुहार से भरी बातें 

मुझे याद रहती हैं 

उन्माद भरी सौगातें |

जब मन को सम्हाला था अपने 

कितना  अवेरा था उसे बड़े कष्टों के बाद 

अब कोई बाधा नहीं चाहती उस अवसाद के वाद |

न जाने क्यों  कोई मुझे पनपने नहीं देता 

उस हादसे के   बाद 

न जाने कैसी उस  की शत्रुता ने जन्म लिया है |

नाही मैंरी कोई रुझान  है कभी

ना तो  अंध भक्ति की है 

पर अवसाद ने ऐसा घेरा है मुझे 

कैसे  मुक्त हो पाउंगी  उससे |

पिंजरे में बंद मैना हो कर रह गई हूँ 

मुझे समझ न पाया कोई 

प्रातः  उठ कर  जीवन को प्रवाह देती हूँ 

श्याम तक थक कर चूर हो जाती हूँ |

मन फूटफूट कर रोने को मचलने लगता है

हार जाती हूँ जीना चाहती हूँ उस  बीते कल में 

मुझे ऐसा साथी  चाहिए

जो मुझे 

बहुत प्यार से अपनाए

  कभी धोखा न दे अपनी बातों से 

बात अपनी  बड़े  धीमें धीमें मनवाए |

फिर वहीं नजारा हो पहले जेसा 

 जो वाट देखते  रहने को जी चाहता हो 

फिर से देखने को मुझे उत्सुक रखता हो 

अपने आप में संयत रखता हो |

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.10.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4594 में दिया जाएगा
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  2. मन की गति समझे न कोई ! बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !

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  3. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  4. मन के उमड़ते निर्बाध भावों की मार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय आशा जी।सादर 🙏

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