मेरी चाहत है खोलो मन की ग्रंथियां
मन को भरम से दूर करो
फिर देखो सोचो समझो
मन को ज़रा सा सुकून दो |
तभी जीवन की उलझने
पूरी तरह सुलझ पाएंगी
जीवन में बहार आएगी
जीवन खुशनुमा होगा |
मन में बहार आएगी
अपने आप उसको सुकून मिलेगा
जिन्दगी में प्रसन्नता आएगी
प्यार की ऊष्मा छाएगी |
किसी से उलझने से है लाभ
क्या
यह तो समझ का है फेर समझो
मन को संयत करो आत्म संयम
से काम लो
देखो नेत्र खोल कर तुम भी
समझ जाओगे |
भावनाओं में न बहोगे
यदि मस्तिष्क से काम लोगे
सही क्या है गलत क्या
अपनी क्या भूल हुई है जान
जाओगे |
आशा सक्सेना
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंसुन्दर सोच
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंसुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ह्रदयेश जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसार्थक चिंतन !
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