30 अक्टूबर, 2022

जब नींद न आए

 

जब नींद न आए

आधी रात तक जागरण हो

बहुत कोशिश के बाद भी

 मन स्थिर न  रहे |

मन में विषाद उपजे

                                   बार बार विचलन हो

है क्या कारण

कोशिश तो की है पर

फिर भी ध्यान न केन्द्रित हो  |

वजह जानने के लिए

प्रयत्न भी किये भरपूर

पर असफलता ही हाथ लगी

सफलता से दूरी होती गई |

सफल होने के लिए

असफलता का ही सहारा लिया

मन में खुशी जाग्रत हुई

जब कोई सुराग मिला सफलता का |

धीरे धीरे खुमारी आई

नयनों में निंद्रा का राज्य पसरने लगा

कब रात हो गई सपने याद नहीं

मैं नीद में खो गई  |

आशा सक्सेना 

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(३१-१०-२०२२ ) को 'मुझे नहीं बनना आदमी'(चर्चा अंक-४५९७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. निश्चिन्त और निर्द्वंद्व मन हो तब ही नींद आ सकती है ! सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं

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