जब नींद न आए
आधी रात तक जागरण हो
बहुत कोशिश के बाद भी
मन स्थिर न रहे |
मन में विषाद उपजे
है क्या कारण
कोशिश तो की है पर
फिर भी ध्यान न केन्द्रित
हो |
वजह जानने के लिए
प्रयत्न भी किये भरपूर
पर असफलता ही हाथ लगी
सफलता से दूरी होती गई |
सफल होने के लिए
असफलता का ही सहारा लिया
मन में खुशी जाग्रत हुई
जब कोई सुराग मिला
सफलता का |
धीरे धीरे खुमारी आई
नयनों में निंद्रा का राज्य
पसरने लगा
कब रात हो गई सपने याद नहीं
मैं नीद में खो गई |
आशा सक्सेना
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(३१-१०-२०२२ ) को 'मुझे नहीं बनना आदमी'(चर्चा अंक-४५९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
aabhaar aniitaa ji meree rachanaa ko aaj ke ank men sthaan dene ke liye
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अभिलाषा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएं"तोरा मन दर्पण कहलाए"
जवाब देंहटाएंनिश्चिन्त और निर्द्वंद्व मन हो तब ही नींद आ सकती है ! सुन्दर रचना !
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