आज के बच्चे खेल रहे मोवाइल पर
दिनरात पीछे पड़े रहते उसके
कुछ नया जानना नहीं चाहते
रावण दहन तक नहीं |
वे नहीं चाहते कुछ अधिक जानना
किसी त्यौहार के बारे में
नाही जानना चाहते
कारण त्यौहार मनाने का |
समाज में बड़े स्टेटस वाले
शान शौकत से रहने वाले
इसे तुच्छ समझते
कहते इन सब की जानकारी से
समय यूँ ही बर्वाद होगा क्या लाभ होगा
व्यर्थ की जानकारी से |
धर्म में उनकी कोई रुची नहीं है
हैं वे पाश्चात्य सभ्यता के अनुरागी
उन्हें नहीं भारत की सभ्यता से लगाव
भाषा तक पसंद नहीं हिन्दी उनको
|वे अंधानुकरण करते है अंग्रेजों की |
मन को बहुत कष्ट पहुंचता है यही सब देख
मन नहीं होता उनसे कुछ कहने सुनने का
वे डूबे इतना आधुनिकता में
भूल गए अपना धरातल अपनी संस्कृति
बस हाय हलो ही याद रही
प्रारम्भ होता सुबह हाय पापा हाय मम्मा से
कितावों में रख करअवांछित कहानियां पढ़ते
जताते कितना पढ़ रहे हैं |
आशा सक्सेना
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 7.10.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4574 में दिया जाएगा|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
आभार दिलबाग जीआज की रचना सूचना के लिए |
हटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसच है ! आज के बच्चे अपने संस्कार और नैतिक, पारिवारिक मूल्यों को भूल रहे हैं ! यह बहुत चिंतनीय स्थिति है ! बच्चों के सही रास्ता दिखाने के प्रयत्न परिवार वाले और माता पिता ही कर सकते हैं और उन्हें करना भी चाहिए !
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