शिक्षा जीवन भर चलती
बचपन अनुशासन की पहली सीड़ी
मां रही प्रथम गुरू उस उम्र की
धीरे से जब कदम बढाए
उम्र ने आगे बढ़ने की राह
चुनी |
कितने ही गुरू मिले पर
संतुष्टि नहीं मिल पाई
सच्चा गुरू मिला जब
कुछ नया सीखने को मिला |
पूरा पूरा ज्ञान मिला
मन में संतुष्टि आई
खुशी चहरे पर छाई |
तीसरी सीड़ी पर ध्यान भटका
कहीं अटकने का मन हुआ पहले
पर ठोकर खाई पहले पैर
लड़खड़ाए
पर झटके से सम्हले आगे बढे|
चतुर्थ चरण में राम नाम का आकर्षण हुआ
आने वाले कल की याद में
मुक्ति के कपाट खुले देख
आगे बढ़ने की राह मिली
जीवन को सद्गति मिलती |
आशा सक्सेना
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंपूरे जीवन को परिभाषित कर दिया आपकी इस सुन्दर प्रस्तुति ने!
जवाब देंहटाएंजीवन के हर रंग को समेटती सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएं