बचपन से आज तक हर बार
अपने कदम सम्हाल कर रखे
कोशिश की कि कोई भूल न हो जाए
सम्हल सम्हल कर जब कदम रखे
जीवन जीना आया खुद में संयम आया |
मन का भटकाव अंतर्ध्यान होगया
मुझ में धैर्य का समावेश हुआ
अनोखे सुकून को भी अनुभव किया
अब मुझे आवश्यकता नहीं किसी की सलाह की
जो मिलती तो सरलता से है
पर पालन उसका उतना ही कठिन
कहीं भी जीवन जीना आसान नहीं
हर समय यही मन में शंका रहती
मेरे पैर न फिसल जाएं
धैर्य और संयम मुझसे न दूर हो जाएं |
माँ ने सिखाया था मुझे
हर वह कार्य जो सब को अच्छा लगे
जो हो लाभ प्रद किसी को कष्ट न दे
करने में कोई हर्ज नहीं है |
पर गलत क्या है और सही क्या
इसका ज्ञान होना ही चाहिए
यदि यही समझ में होगा स्पष्ट
कोई कठिनाई न होगी
सही और गलत है क्या ?
अपने मन को खोजने में
मैं ने क्या गलत किया कब उसे दोराहाया
मन को कष्ट न होगा खुद को समझने में |
आशा सक्सेना
सार्थक चिंतन !
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