23 नवंबर, 2022

आज भोर का तारा टूटा

 

आज भोर का तारा टूटा

सुबह का स्वप्न भी देखा

किस बात पर ध्यान दूं

अपने को कैसे दूं सांत्वना |

कोई कार्य तो ऐसा हो कि

मन में शंका न  हो पाए

सब कुछ आसानी  से हो

जीवन आगे बढ़ता जाए |

क्यों मेरे मन में हो शंका  ?

जीवन जितना बीता

कोई कठिनाई तो नहीं  आई

अबतक जिस का सहारा मिला

 मैं क्यूँ न जान पाई |

क्या यही अज्ञानता हुई मेरी

 मेरे लिए  सोच का कारण बनी

जितनी उस से दूरी बनाने की कोशिश  की

वह  मेरे पास खिचती आती गई |

मैं खुद को और उसको समझ न पाया

 न जाने क्यूँ खुद को उसके नजदीक पाया

यही हाल कैसे हुआ मेरा

न सोचा न ही जान पाया | 

आशा सक्सेना 

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 24 नवंबर 2022 को 'बचपन बीता इस गुलशन में' (चर्चा अंक 4620) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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    1. आभार रविन्द्र जी इस रचना की सूचना के लिए |

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  2. बहुत खूब ! सुन्दर प्रस्तुति !

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