जब बच्चा बहुत छोटा होता हैं माँ हर बात में रोकती टोकती है |पर धीरे धीरे कब बच्चा बड़ा हो जाता है बच्चे को बहुत अजीब सा लगाने लगता है |अगर उसे ऑफिस में देर हो जाए तब भी माँ उसे टोकती है इतनी देर कहाँ हो गई |समय की कीमत समझो समय पर आया जाया करो |नियमित जीवन बहुत उपयोगी होता है |सभी कार्य यदि समय से करोगे कभी समय की कमीं नहीं पड़ेगी |हम भी नौकरी करते थे पर सारे काम समय पर होते थे |बच्चा सोचता है” मैं कब बड़ा होऊंगा माँ की नज़रों में “|पर एक अदि दिन तो टोका टोकी नहीं होती पर फिर से माँ का टोकने का क्रम शुरू हो जाता है |इस आदत में बदलाव कैसे आए ?क्या मैं गलत हूँ ?मुझे सलाह चाहिए आपसे |
आशा सक्सेना
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 03 नवंबर 2022 को 'समयचक्र के साथ बदलता रहा मौसम' (चर्चा अंक 4601) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बच्चों को अधिक टोकना अच्छा तो नहीं लेकिन कभी-कभी यह जरुरी होता है माँ-बाप के लिए, भले ही वे बुरा माने। क्योँकि इसमें उनके ही भले की बातें होती हैं, भला और बाहर वाला होगा जो उन्हें समझा सकेगा? मैं समझती हूँ उन्हें यदि कोई अच्छी-बुरी बातों को अच्छे से समझा सकता है तो वह माँ ही होती है।
जवाब देंहटाएंटोका टाकी किसीको नहीं अच्छी लगती लेकिन कभी कभी अंकुश रखने के लिए यह ज़रूरी भी हो जाती है ! हाँ अति नहीं होनी चाहिए ! कभी कभी तो बच्चे सुन लेंगे लेकिन हर समय का यही राग रहा तो वे विद्रोही हो जायेंगे !
जवाब देंहटाएंबहुत ही विचारणीय बिन्दुमात-पिता की स्वाभाविक मनःस्थिति की उपज है टोका-टोकी! हाँ, प्रयास कर के इस पर कुछ संयम पाया जा सकता है।
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