क्या तुमने कभी मुझे याद
किया
भूले से प्यार का दिखावा किया
यदि हाँ तो कब किया कितना
किया
किस के मार्ग दर्शन में किया |
क्या है एहमियत मेरी तुम्हारी
निगाहों में
या थोपा गया रिश्ता है मेरा तुम्हारा आपस में
या तुमने कभी मुझे प्यार से
चाहा है मुझे
या कहने भर से सतही रिश्ता जोड़ा है मुझसे
या किसी के कहने से यह बंधन स्वीकारा है
मुझे यह रिश्ता नहीं भाता ना ही आकृष्ट करता |
मात्र दिखावा होते उनमें कोई सत्यता नहीं होती
चाहत भी सतही होती जिसे देख
नहीं पाते
केवल महसूस कर पाते जब समाज में रहते |
तब मन को बड़ा कष्ट होता मन
विचलित होता
एकांतवास का इच्छुक होता जीवन
में शान्ति चाहता
पहले जैसा जीवन चाहता
जब भी रात होती फिर दिन होता
फिर चिड़ियों की चहचाहाहट होती |
कब सूरज की ऊष्मा हमारी देह को छू जाती
उसका अद्भुद एहसास होता जीने की तमन्ना जगाता
मन उत्फुल्ल हो गुनगुनाता सूर्य
रश्मियों से खेलता था
अपने नैसर्गिक सौन्दर्य को
बरकरार रखता था |
आशा सक्सेना
वाह ! बहुत ही सुन्दर एवं तथ्यपरक रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6-11-22} को "करलो अच्छे काम"(चर्चा अंक-4604) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आभार कामिनी जी मेरी रचना को इस अंक में स्थान देने के लिए |
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंआदरणीया आशा सक्सेना जी, नमस्ते 🙏❗️
जवाब देंहटाएंसकारात्मक संदेश देती रचना!
कब सूरज की ऊष्मा हमारी देह को छू जाती
उसका अद्भुद एहसास होता जीने की तमन्ना जगाता.
साधुवाद!
कृपया मेरे ब्लॉग marmagyanet.blogspot.com पर "पिता" पर लिखी मेरी कविता और मेरी अन्य रचनाएँ भी अवश्य पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएं.
पिता पर लिखी इस कविता को मैंने यूट्यूब चैनल पर अपनी आवाज दी है. उसका लिंक मैंने अपने ब्लॉग में दिया है. उसे सुनकर मेरा मार्गदर्शन करें. सादर आभार ❗️ --ब्रजेन्द्र नाथ
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अभिलाशा ही टिप्पणी के लिए |
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