11 दिसंबर, 2022

समस्या मेरी

  






कर्तव्य मेरा भूल  चली मैं

बाँध किसी से डोर प्यार की

भूली अपने सारे कर्तव्य  

किस से पूंछूं  विचार न किया |

यही कष्ट रहा आज तक

मैं अपने कर्तव्य निभा न सकी

रही अनमनी हर समय

उलझी उलझी अपने में |

जिन्दगी की पेचीद्गी

से दूर नहीं हो पाई

क्या चाहा था क्या किया

कहीं सफल न हो पाई |

रह गई अधूरी तमन्ना मन में

 देख  न सकी दुर्दशा अपनी  

जीवन लगा भार सा अब तो

क्या यही नियति थी मेरी |

किसी ने हल ना की समस्या मेरी  

जीवन में किसी का स्थान नहीं था

अब खुद ही उलझी अपने में

कैसे निभा पाऊँगी  सब से |

 यही  दुविधा है मन में 

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