26 दिसंबर, 2022

सागर भावों का






                                                   भावों के समुद्र में बहती गई  

शब्दों की लहरों पर हो कर सवार 

की सैर बड़ी दूर तक उनके  साथ 

फिर भी किनारा न मिल पाया |

बिम्बों ने सहारा भी दिया 

पर आधा अधूरा 

किनारे  तक न पहुंचाया पाए 

दोहे छंदों की  बड़ी लहरों से दब कर रह गए|

 तुक बंदी की कोशिश की कुछ लिखा भी 

लहरों के कोलाहल से प्रेरणा लेकर

 कुछ  गुनगुनाया भी,  नजारा  हुआ विशिष्ट  

 कुछ समय  बाद जहां खड़ी थी वहीं पहुंची |

दूसरे किनारे तक पहुँच ही नहीं पाई 

लय ताल का कोई ज्ञान न था

 पर विधा की खोज जारी थी, 

कोशिश भी की  पूरी  सफल न हो पाई 

कोई विधा न चुन पाई, लेखन के लिए |

संतुष्टि मन में यही रही 

 अपने विचार स्पष्ट  व्यक्त किये

  किसी विधा को चुने बिना |

भाव कभी   कविता की लाइन में सजे   

बड़ी लहरों की   बाधा  के साथ भी   बहे 

कभी बीच में ही दम तोड़ा

 किनारे तक न पहुँच  अधूरे ही रहे |

आशा सक्सेना 





 

2 टिप्‍पणियां:

  1. किसने कहा आप किनारे तक नहीं पहुँचीं ! आपने तो लेखन में कीर्तिमान भी स्थापित किये हैं और सफलता भी पाई है ! हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ! सुन्दर रचना !

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  2. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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