उसकी उदासी देखी न जाती
किस तरह प्रसन्न करूं उसको
कैसे मनाऊँ उसको
कोई तरकीब समझ न आती |
कभी उगता सूरज दिखाती
सूर्य रश्मियाँ उसे भातीं
उड़ती चिड़ियों के पास ले जाती
बाग़ की सैर कराती |
नाचता मोर देख वह खुश होती
कलियों पर उड़ते भ्रमर
एक से दूसरी टहनी पर जाते
कभी पुष्प में बंद हो जाते गुंजन करते |
रंग बिरंगी तितलियाँ उड़तीं
पुष्पों से अटखेलियाँ करतीं
बहुत सुन्दर दिखतीं
मन उनके साथ भागता
चाहता सभी को समेट ले
अपनी बाहों में |
कविता उनके पीछे जाती
साथ भागती उन्हें पकड़ना चाहती
मन होता देखती ही रहूँ
उस मंजर को |
उसकी भी उदासी न जाने कहाँ गई
वह चहकने लगी , कहा यहीं ठहरो
घर नहीं जाना है
यहीं खेलना है,इन के संग |
क्या यह नहीं हो सकता
इनको भी साथ ले चलें
अपने कमरे में इनको रखूंगी
अपने साथ सुलाऊँगी|
उसकी उदासी गुम हुई
वह कल्पना में खो गई
उसका चेहरा खिल उठा
घर जाना ही भूल गई |
आशा सक्सेना
वाह ! बहुत ही सुन्दर रचना ! बहुत प्यारी कल्पना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए|
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर कल्पना...
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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