28 दिसंबर, 2022

उसकी उदासी



उसकी  उदासी देखी न जाती 

किस तरह प्रसन्न करूं उसको  

कैसे  मनाऊँ उसको 

कोई तरकीब समझ न आती |

कभी उगता सूरज दिखाती 

सूर्य रश्मियाँ उसे भातीं 

उड़ती चिड़ियों के पास ले जाती 

बाग़ की सैर कराती |

नाचता मोर देख वह  खुश होती 

कलियों पर उड़ते भ्रमर

 एक से दूसरी टहनी  पर जाते 

कभी पुष्प में बंद हो जाते गुंजन करते   |

  रंग बिरंगी तितलियाँ   उड़तीं 

पुष्पों से अटखेलियाँ करतीं 

बहुत सुन्दर  दिखतीं 

मन उनके साथ भागता 

चाहता सभी को समेट ले 

 अपनी बाहों में  |

 कविता  उनके पीछे जाती

  साथ भागती उन्हें पकड़ना चाहती 

मन होता देखती ही रहूँ  

उस मंजर को  |

 उसकी भी उदासी न जाने कहाँ  गई 

वह  चहकने लगी  , कहा यहीं ठहरो 

 घर नहीं जाना है

 यहीं खेलना है,इन के संग |

  क्या यह नहीं हो सकता 

 इनको भी  साथ ले चलें 

अपने कमरे में इनको रखूंगी 

अपने साथ सुलाऊँगी|

उसकी उदासी गुम हुई 

 वह  कल्पना में खो गई 

उसका चेहरा खिल उठा

 घर जाना ही  भूल गई |

आशा सक्सेना 

6 टिप्‍पणियां:

Your reply here: