04 दिसंबर, 2022

मीरा

 

मन के मंदिर में वह बैठी 

किसी के इंतज़ार में

कभी कुछ भी पढ़ा नहीं

 दो शब्दों  का प्यार बहुत है यही कहा मीरा ने|

  प्यार ही सबकुछ है और कुछ  नहीं

उसे लगाव है ज्ञान  से

वह पढ़ पाती नहीं

पर लगाव है इतना कि

किसी और से बाँट भी नहीं  पाती  |

यही आप सब ने भी देखा होगा

यह है मन से है किसी ने कहा नहीं 

फिर भी कहा अज्ञानी उसे |

जब उसकी आँखों को भरे देखा   

मन को गहन  दुःख  हुआ 

अश्रू बहाने से क्या लाभ

जब किसी ने उसे समझा नहीं | 

फिर भी ममता  कहीं छुपी रही 

उसके दिल के कोने   में  | 

 





आशा सक्सेना 

2 टिप्‍पणियां:

  1. ए री मैं तो प्रेम दीवानी मेरी पीर न जाने कोय !
    मीरा की व्यथा उनकी इस रचना से जानी जा सकती है ! सुन्दर कविता !

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