मन के मंदिर में वह बैठी 
किसी के इंतज़ार में 
कभी कुछ भी पढ़ा नहीं
दो शब्दों का प्यार बहुत है यही कहा मीरा ने|
प्यार ही सबकुछ है और कुछ नहीं
उसे लगाव है ज्ञान  से 
वह पढ़ पाती
नहीं 
पर लगाव है इतना कि 
किसी और से बाँट भी
नहीं  पाती  |
यही आप सब ने भी
देखा होगा 
यह है मन से है किसी ने कहा नहीं
फिर भी कहा अज्ञानी
उसे |
जब उसकी आँखों को भरे देखा
मन को गहन दुःख हुआ
अश्रू बहाने
से क्या लाभ 
जब किसी ने उसे समझा नहीं |
फिर भी ममता कहीं छुपी रही
उसके दिल के कोने में |
आशा सक्सेना
 
 
ए री मैं तो प्रेम दीवानी मेरी पीर न जाने कोय !
जवाब देंहटाएंमीरा की व्यथा उनकी इस रचना से जानी जा सकती है ! सुन्दर कविता !
धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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