कब तक परखोगे मुझ को
मुझ सा कोई नहीं मिलेगा तुम्हें
हूँ एक अकेला जीव ऐसा
जब तक तुमसे नहीं जीता
मुझे नहीं मिली सुख
की छाया |
यह एक दिन की बात नहीं
कितने ही कदम बढ़ाए मैंने
जब तब दो दो हाथ किये
आकलन जब खुद न कर पाया
संभल चाहा तुम जैसों का
तुम भी मुझे समझ न पाए
मुझे हुआ दुःख इस बात का |
मेरी अपेक्षा में आशा के अलावा
गलत क्या और सही क्या है
तुम यह
तो बताओ
केवल ख्याली पुलाव न पकाओ
इससे मुझे गहरा दुःख होगा
तुम पर से भी मेरा विश्वास उठ
जाएगा
मित्र जैसा कोई न नजर आएगा |
सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएं