कितनी बार समझोता किया
हर पहलू पर नजर डाली
जो मन को न भाए दर किनारे किया
तब भी न बच पाए बिकट रूप ले वार किया |
मन को इतनी ठेस लगी भूले रिश्ते नाते
,कोई नहीं अपना जान गए हैं वास्तब में
रिश्तों को पहचान गए हैं नजदीक से
जो रिश्ते दिखावे से बनते सतही कहलाते,
खून के रिश्ते अलग नजर आते |
रिश्ते जो समय पर दिलो जान से काम आते
दिखावे में नहीं होता विश्वास उनका
अपने से ज्यादा मित्रों को कुछ ना समझते
वे रिश्ते होते मतलब से गहरे बहुत |
एक ही रिश्ता होता पर्याप्त
अधिक की आवश्यकता नहीं होती
बुरे समय पर जो साथ दे नेक सलाह दे
वही होता सच्चा रिश्ता बाक़ी सब अकारथ |
जो धोखे में रखे नेक सलाह न दे
ऐसे रिश्ते से क्या लाभ कैसे उसे अपना कहें
जो धोखे में रखे और बचा न पाए दूसरे को
अच्छी सलाह न दे पाए गुमराह करे |
ऐसे रिश्ते से तो अकेले ही अच्छे
सही पहचान यदि न हो पाई रिश्ते की
बिना बात ही समस्या बड़ी बिकट हो जाती
खुद को मुसीबत में डालती |
आशा सक्सेना
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंचिंतनपरक भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंdhanyvaad sadhana tippanii ke liye|
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