जीवन में खलिश पैदा हुई
कोई सुख न मिल पाया
आधी उम्र तो बीत गई
मनमीत मुझे न मिल पाया |
कब तक खोजती रहूंगी
तुम्हें मेरे मनमीत
लगता है बिना जल पिए मरूंगी
अपनी अधूरी चाह लिए |
एक ही स्थान पर टिकी हूँ
कही नहीं विश्राम मुझे
मन बुझाबुझा सा है
जीवन में काई जमी है |
मन की प्रसन्नता न मिल पाई
जाने कितने दर दर भटकी हूँ
प्यार के दो शब्दों के लिए
अपनी राहें खोज रही हूँ |
सुबह से शाम तक जीवन का बोध
पूर्ण कभी न हो पाया मन संतप्त हुआ
जीवन का मोह भंग हुआ क्षण भंगुर जीवन है
प्रभू के ध्यान में मगन रहूँ और नहीं कुछ कहना है |
आशा सक्सेना
बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
हटाएंसुन्दर क्षणिकाएं !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
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