07 जनवरी, 2023

क्षणिकाएं

 जीवन में खलिश पैदा हुई 

कोई सुख न मिल पाया 

आधी उम्र तो बीत गई 

मनमीत मुझे न मिल पाया |


कब तक खोजती रहूंगी 

तुम्हें मेरे मनमीत 

लगता है बिना जल पिए मरूंगी 

अपनी अधूरी चाह लिए |


एक ही  स्थान पर टिकी हूँ 

कही नहीं विश्राम मुझे 

मन बुझाबुझा सा है 

जीवन में काई जमी है | 


मन की प्रसन्नता न मिल पाई 

जाने कितने दर दर  भटकी हूँ 

प्यार के दो शब्दों  के लिए

  अपनी राहें खोज रही हूँ |


सुबह से शाम तक जीवन का बोध 

पूर्ण कभी न हो पाया मन संतप्त हुआ 

जीवन का मोह भंग हुआ  क्षण भंगुर जीवन है  

 प्रभू के ध्यान  में मगन  रहूँ  और नहीं कुछ  कहना  है |

आशा सक्सेना 

 

 

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