कितना इसरार किया तुमने
फिर भी न मानी एक बात उसने
यह ज्यादती हुई कैसे किस लिए
किसी दुश्मन ने सिखाया होगा उस को|
कान भरे होंगे उसके आए दिन
मन विगलित हुआ होगा यह जान कर
उसका रूप देख बहरूपिये जैसा
कितना कलुष भरा है मन में उसके
यह अभी देखा समझा है मन में |
बड़ा दिखावा करती है जाने कितनों को छलती है
सोच रही थी किसीने जाना न होगा
पहचाना न होगा उसकी फ़ितरत को
यहीं मात खाई उसने तुम्हे वह जान न पाई |
सब जानते थे बहुत बारीखी से उसे
तुम्हें सतर्क भी किया था पर तुम न समझे
तुमने भी उसे अपने जैसा समझा |
सोचा पहली भूल को क्षमा किया जा सकता है
तुम क्या जान पाए वह आदतन ही धोकेबाज है
कहेगी कुछ करेगी क्या?कुछ कहा नहीं जा सकता
तभी तुमने धोखा खाया है उसने तुम्हें ठुकराया है |
आशा सक्सेना
हर चेहरा मुखोटा लगाए हुए है यथार्थ रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
हटाएंजीवन में हर कदम पर मुखौटे लगाए ऐसे अनेकों बहुरूपिये मिलते हैं उनसे सतर्क रहना और दूरी बनाए रखना बहुत ज़रूरी होता है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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