04 फ़रवरी, 2023

तुमने जिसे कहा था गुलाब

 


अपने सपनों को सजाया मैंने

इस ख्याल से तुमने जिसे कहा था गुलाब प्यार से |

किसी के प्यार को महत्त्व दिया तुमने

हमें न सही,  यही क्या कम है

मन  को सम्हाला था  मैंने बड़े विश्वास  से |

तुमने मुझे न अपनाया मन से यहीं मैं गलत थी

तभी रही बेकरार तुम्हारे इंतज़ार में

भ्रम मेरा टूटा जब सत्य से दो चार हुई

 प्यार तुम्हारा देख  किसी के साथ में   |

सत्य का सामना करने की भी ताकत नहीं थी मुझमें

मन को विक्षोभ हुआ मेरे |

 मैंने तुम्हारे प्यार  को अलग दृष्टि से देखा था

मैंने यही गलत किया था |

यदि अपनी सोच सही रखती सदा जमीन पर रहती

 मुझे यह दिन  देखना नहीं पड़ता |

मन को मलाल न होता  यदि सोचा होता दिमाग से  

या कहा अपनों  का मान  लिया होता |

अब ऐसी गलती दोबारा न करूँ यही है चाह मेरी

अंतर सच और झूट का  जान लेती  मैं भी  |

आशा सक्सेना 

2 टिप्‍पणियां:

Your reply here: