अपने सपनों को सजाया मैंने 
इस ख्याल से तुमने जिसे कहा
था गुलाब प्यार से |
किसी के प्यार को महत्त्व
दिया तुमने 
हमें न सही,  यही क्या कम है 
मन  को सम्हाला था  मैंने बड़े
विश्वास  से |
तुमने मुझे न अपनाया मन से यहीं मैं गलत थी 
तभी रही बेकरार तुम्हारे इंतज़ार
में 
भ्रम मेरा टूटा जब सत्य से
दो चार हुई 
 प्यार तुम्हारा देख  किसी के साथ में   |
सत्य का सामना करने की भी ताकत
नहीं थी मुझमें 
मन को विक्षोभ हुआ मेरे |
 मैंने तुम्हारे प्यार  को अलग दृष्टि से देखा था 
मैंने यही गलत किया था |
यदि अपनी सोच सही रखती सदा
जमीन पर रहती
 मुझे यह दिन  देखना नहीं पड़ता |
मन को मलाल न होता  यदि सोचा होता दिमाग से  
या कहा अपनों  का मान 
लिया होता |
अब ऐसी गलती दोबारा न करूँ यही
है चाह मेरी 
अंतर सच और झूट का  जान लेती  मैं भी  | 
आशा सक्सेना
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बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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